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ग़ज़ल
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे
ने किसी की जेब में थे न किसी झोली में थे
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता
कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
दिल-ए-ना-सुबूर को फिर वही बुत-ए-बेवफ़ा की तलाश है
ग़म-ए-इब्तिदा तो उठा चुका ग़म-ए-इंतिहा की तलाश है
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
गुज़र कर आदमी राह-मुसीबत से सँवरता है
क़मर का नूर शब की ज़ुल्मतों में ही निखरता है
नाज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
ख़्वाबों की अंजुमन में न वीरानियों में था
दिल का सुरूर शौक़ की नादानियों में था
इम्तियाज़ अहमद क़मर
ग़ज़ल
नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे
फ़साना तूर का तज्दीद ऐ जज़्ब-ए-रसा कर दे
ज़हीर अहमद ताज
ग़ज़ल
अव्वल तो जल्वा-गाह में दिल की बिसात क्या
दिल है जुनूँ-नवाज़ तो फिर एहतियात क्या
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़